rahim das biography in hindi > रहीम दास का पूरा नाम अब्दुल रहीम खान-ए-खाना था और उनका जन्म 1556 में लाहौर (जो अब पाकिस्तान में स्थित है) में हुआ था। रहीम के पिता का नाम बैरम खान था, जो मुगल सम्राट अकबर के संरक्षक थे। किन्हीं कारणों से अकबर ने बैरम खान से नाराजगी व्यक्त की, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें धोखा देने का आरोप लगाकर मक्का भेज दिया गया। यात्रा के दौरान बैरम खान की हत्या कर दी गई।
बैरम खान की हत्या के बाद अकबर ने रहीम और उनकी मां को अपने पास बुलाया और रहीम की शिक्षा का उचित प्रबंध किया। रहीम ने हिंदी, संस्कृत, और अन्य भाषाओं में ज्ञान प्राप्त किया। अकबर ने उनकी विद्वता और क्षमताओं को देखकर उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल किया।
रहीम को दयाल, प्रकृति और कृष्ण के भक्त के रूप में जाना जाता था। अकबर की मृत्यु के बाद, जहांगीर के शासनकाल में भी रहीम की प्रतिष्ठा और महत्व बना रहा।
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रहीम की भाषा-शैली
रहीम जनसाधारण के लिए अपने दोनों ही पहलुओं को लेकर प्रसिद्ध थे। उन्होंने कभी भी अपने कार्यों को केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं किया, बल्कि आम लोगों के हित में अपनी काव्य रचनाएँ प्रस्तुत कीं। रहीम ने ब्रज भाषा में अपनी काव्य रचनाएँ कीं, और उन्हें ब्रज का सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली कवि माना जाता है।
रहीम की कविताओं में विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। वे अवधि और ब्रज भाषा के शब्दों का उपयोग अपनी कविताओं में करते थे, जिससे उनकी रचनाएँ बहुभाषी और विविधता से भरपूर होती थीं।
रहीम ने प्रणब्धि (प्राचीन साहित्यिक विधा) और ग्रामीण शब्दों का भी उपयोग अपनी कविताओं में किया। उनकी मुक्तक शैली की कविताएँ आज भी अद्वितीय मानी जाती हैं और उनकी शैली में गहराई, सरलता और प्रभावशीलता है। रहीम की काव्य रचनाएँ आज भी प्रशंसा की जाती हैं और उनकी शैली साहित्यिक दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखती है
रहीम साहित्यिक परिचय
रहीम अत्यंत लोकप्रिय कवि थे और उनके नीति दोहे आज भी प्रशंसा प्राप्त करते हैं। उनकी रचनाओं में नीति और सच्ची संवेदनशीलता दोनों की झलक मिलती है। रहीम के दोहे में न केवल जीवन की नीति और सच्चाई को दर्शाया गया है, बल्कि उनकी कविता में गहरी भावनात्मक संवेदनाएँ भी देखने को मिलती हैं।
रहीम की कविताएँ दैनिक जीवन की अनुभूतियों पर आधारित होती हैं और वे सीधे दिल को छूने वाले होते हैं। उनके दोहे ऐसे कथनों से भरे हुए हैं जो सीधे हृदय पर प्रभाव डालते हैं। इसके अलावा, रहीम की रचनाओं में नीति के अतिरिक्त भक्ति और श्रृंगार की सुंदरता भी दर्शाई गई है, जो उनके काव्य को और भी आकर्षक बनाती है। उनकी कविताओं में भक्ति, श्रृंगार, और भावनात्मक गहराई का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है, जो उन्हें एक अद्वितीय और सम्मानित कवि बनाता है।
रहीम दास का जन्म कब हुआ था ?
रहीम दास के दोहे
रहीम दास के दोहे और रचनाएँ जीवन की विभिन्न स्थितियों और अनुभवों को सरल और प्रभावी भाषा में प्रस्तुत करती हैं। उनके दोहे आज भी बहुत याद किए जाते हैं और उनकी गहरी समझ और ज्ञान को दर्शाते हैं।
रहीम का सबसे प्रसिद्ध दोहा है:
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे तो फिर ना जुड़े, जुड़े तो गांठ पड़ जाय।”
इस दोहे में रहीम प्रेम की नाजुकता और स्थायिता के बारे में बात कर रहे हैं, यह बताते हुए कि प्रेम एक धागे की तरह होता है—यदि टूट जाए तो दोबारा नहीं जुड़ता और अगर जुड़ जाए तो गांठ पड़ जाती है।
एक और प्रसिद्ध दोहा है:
“रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डाक।
जहां काम आवे सुई, कहां करे तलवारी।”
इस दोहे में रहीम ने यह बताने की कोशिश की है कि बड़े और छोटे के महत्व को समझना चाहिए। जब किसी कार्य में सुई की आवश्यकता हो, तो तलवार का उपयोग बेकार होता है।
रहीम के अन्य दोहे भी उनकी गहरी सोच और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जैसे कि:
“रहिमन सोई पेड़ से, जो सुख दे सबको लाज।
काटे जो काँटे काटे, दुखी करे उजार।”
इन दोहों में रहीम ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को सरलता से व्यक्त किया है, जो आज भी पाठकों को प्रेरित करते हैं। उनके दोहे जीवन की सच्चाईयों और मानवीय संवेदनाओं को सहज और प्रभावशाली तरीके से उजागर करते हैं
रहीम की मृत्यु
रहीम दास की मृत्यु 1627 ईस्वी में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी कविताएँ और रचनाएँ आज भी लोगों के बीच सम्मानित और याद की जाती हैं। रहीम का जीवन और उनकी रचनाएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं और भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
रहीम की मृत्यु आगरा में हुई थी, और उनके निधन के बाद, उनका मकबरा दिल्ली में बनवाया गया। यह मकबरा आज भी मौजूद है, और रहीम के प्रशंसा करने वाले लोग यहाँ जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके योगदान को याद करते हैं
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